Rewriting Thoughts

कलयुग में संजय 

भारत मे आज कल एक नया चलन चल पड़ा है। 'open letter'। चाहे एक दूसरे को पत्र लिखने का समय मिले ना मिले, पर सार्वजनिक तौर पे पत्र लिख कर किसी व्यक्ति या समाज विशेष की भर्त्सना करना मानो एक trend सा बन गया है। जब कोई open letter किसी के लिए लिखता है तो वो letter एक time bomb की तरह काम करता है। यह open letter social media पर ज़लज़ला ला देता है।सब काम छोड़ इस पर अपने तर्क देना शुरू कर देते है।कुछ पक्ष लेते है, कुछ विपक्ष। इस तरह सब काम भूल हम अपने आप को इस फालतू की बहस मे उलझा देते है। नतीजा यह की दिन भर रात भर ये bomb हमारे पीछे लगा रहता है। और शायद हमारे गुस्से के रूप मे अपने ही लोगो पे फटता है। यहाँ तक की समाचारो मे भी बस इसी topic का ज़िक्र रहता है। खैर news channel तो कहना ही क्या है। वो तो शायद अपनी ज़िम्मेदारी ही भूल गए है। मान लो यदि संजय ने महाभारत का आंखो देखा हाल धृतराष्ट्र को मिर्च मसाला लगा कर बताया होता तो क्या संजय को ईमानदार reporter कहते? देश की जनता धृतराष्ट्र की तरह ही तो है। हम तो वो देखते है जो हमारे संजय हमे दिखाना चाहते है। हालांकि संजय पद की गरिमा शायद ही कोई रिपोटर रखता हो इस कलयुग मे। काश धृतराष्ट्र अपने ज्ञान चक्षुओं से सब कुछ समझ पाता। तब शायद किसी को किसी संजय की ज़रूरत नही पड़ती।

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